शनिवार, 18 मार्च 2023

महाराजा रणजीत सिंह

 रणजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर 1780 को सुकरचकिया मिसल के मुखिया महा सिंह के घर हुआ था। 1792 में महा सिंह के अचानक देहांत से 12 वर्षीय रंजीत सिंह को सुकरचकिया मिसल का सरदार बनाया गया। लेकिन 1792 से 1797 तक एक प्रति शासन परिषद द्वारा जिसमें उसकी माता राज कौर, सास सदा कोर और दीवान लखपत राय थे ,द्वारा शासन कार्य चलाया गया। रणजीत सिंह की सास कन्हैया मिसल की मुखिया थी। उसने दोनों मिसलों की सहायता से रणजीत सिंह की शक्ति को बढ़ाने का पूरा प्रयत्न किया।

रणजीत सिंह की उन्नति में एक घटना का विशेष योगदान रहा। अहमद शाह अब्दाली का पोता और अफगानिस्तान का शासक जमानशाह भारत पर अपना अधिकार मान आक्रमण करता रहता था।
1796 में जब वह भारतीय अभियान से वापस लौट रहा था तो मार्ग में उसकी बहुत सी तोपे झेलम नदी के दलदल में फंस गई। रणजीत सिंह ने इन तोपों को निकलवा कर जमान शाह को वापस भिजवा दिया। उसके इस कार्य से प्रसन्न होकर जमानशाह ने रणजीत सिंह को राजा की उपाधि दी और लाहौर पर अधिकार करने की अनुमति भी दे दी। इन दिनों लाहौर पर भंगी मिसल का अधिकार था।
रणजीत सिंह ने तुरंत ही 1799 में लाहौर पर अधिकार कर लिया। इस विजय से उसकी प्रतिष्ठा काफी बढ़ गई। इसके बाद उसने जम्मू को जीत लिया। 1805 में अमृतसर को भी भंगी मिसल से छीन लिया।
इस तरह पंजाब की आध्यात्मिक (धार्मिक) राजधानी और राजनीतिक राजधानी (लाहौर) दोनों ही रणजीत सिंह के आ गई और वह सिखों का प्रमुख सरदार बन गया। शीघ्र ही उसने झेलम नदी से सतलज नदी तक के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध के समय माधवराव सिंधिया और यशवंतराव होल्कर ने अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता की मांग की तो रणजीत सिंह ने अपनी स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें सहायता देने से मना कर दिया क्योंकि उसके पास साधन सीमित थे और अंग्रेजों ने भी धमकी दी थी।