जैन साहित्य
महावीर की आदि शिक्षाएं 14 पूर्वो में संकलित थी परंतु यह शीघ्र ही विस्मृत हो गई। वर्तमान में जैन साहित्य में सबसे प्रमुख स्थान आगमो का है। आगम साहित्य विभिन्न श्रेणियों में बंटे हुए हैं। आगमो में 12 अंग , 12 उपांग ,10 प्रकीर्ण ,6 छेदसूत्र ,चार मूल सूत्र इत्यादि शामिल है। इन विभिन्न अंगमो में 12 अंग सबसे महत्वपूर्ण और सबसे प्राचीन है।
अंग साहित्य
इन 12 अंगो में महावीर की शिक्षाएं हैं, जिसका संकलन प्रथम जैन सभा जो 300 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई थी, में किया गया था (मौखिक रूप से)।
प्रमुख अंग
आचारांग सूत्र :में जैन भिक्षुओं के आचार नियमों का उल्लेख है।
भगवती सूत्र :में महावीर के जीवन के बारे में विवरण और ज्ञान के विविध पहलुओं की जानकारी प्राप्त होती है। इसमें सोलह महाजनपदों का भी उल्लेख है। यह सबसे बड़ा आगम है।
ज्ञाता धर्म कथा :में महावीर की शिक्षाओं का संकलन है।
उपासक दशांग में उपासको के जीवन संबंधी नियम है।
अंतगडदसाओ व
अनुतरोववाइयों में प्रसिद्ध भिक्षुओं की जीवन कथाएं हैं।
विपाक सूत्र में कर्म फल का विवेचन है।
ज्ञाताधर्म कथा (न्यायधम्मका): इसमें महावीर की शिक्षाओं का वर्णन कथा, पहेलियों के माध्यम से किया गया हैं। यात्रियों, नाविकों आदि के साहसिक कार्यो का वर्णन भी जगह- जगह किया गया हैं।
दृष्टिवाद- यह अप्राप्य हैं।
12 अंगों में से प्रत्येक का एक उपांग भी है। इन पर अनेक भाष्य लिखे गए जो निर्युक्ति ,चूर्णि या टीका कहलाते हैं।
प्रमुख उपांग साहित्य :ओपपातिक,निरयावलिका,राजप्रश्नीय,जीवाभिगम
,प्रज्ञापना, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति , सूर्य प्रज्ञप्ति, चंद्र प्रज्ञप्ति , कल्पवंतसिका
, पुष्पिका, पुष्पचूलिका ,वृषणी दशा।
छेद सूत्र- जैन भिक्षुाओं के लिए उपयोगी विधि-नियमों का संकलन हैं इसका महत्व बौद्धों के विनयपिटक जैसा हैं।
जैन आगम ओं का वर्तमान रूप वल्लभी में 512 या 513 या
526 में हुई दूसरी जैन सभा में दिया गया था।
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